नन्ही चिरैया
नन्ही गौरैया को अपनी चोंच में दबाकर वह कौआ उठा ले गया और मैं देखती रह गई। उसकी दर्दभरी चीख अब भी कानों में गूँज रही है। पुरुवंशी राजा शिबि ने तो अपनी शरण में आए कबूतर की रक्षा बाज से कर दी थी तो क्या आज उस नन्ही मासूम गौरैया को कोई राजा शिबि जैसा त्यागी और परोपकारी मिला होगा ? क्या किसी ने उसे अभय दान दिया होगा?.......क्या उसके प्राण बचे होंगे ?...अगर वह कौआ गौरैया को दबाए मेरी बालकनी या घर में आ गया होता तो शायद किसी तरह मैं उसकी रक्षा कर भी लेती लेकिन वह तो अचानक ही मेरी बालकनी में फुदकती- चहकती नन्ही चिरैया को एक झटके में अपनी चोंच में भरकर उड़ा ले गया और मैं असहाय सा उसे अपनी आँखों से ओझल होते देखती रह गई। जितनी आजादी उसे मेरे घर की बालकनी में मिली थी क्या वही आज़ादी गौरैया के दूसरे साथी अब भी महसूस करेंगे ?............ क्या मेरे घर में फिर से कोई गौरैया चहकेगी या फिर कौए जैसे आतताइयों के डर से कहीं किसी कोने में दुबक रहेगी!
यह प्रश्नवाचक चिह्न मेरे जहन से नहीं हट रहा कि
किस दिन नन्ही चिरैया आज़ादी की खुली हवा में पंख पसारकर निडर हो उड़ सकेंगीं???