Sunday, May 10, 2020

माँ.....

             
माँ

अथाह विस्तृत अंबर माँ।
        निर्मल शीतल निर्झर माँ।।

मीठे पय का दरिया माँ।
         सुख सागर का जरिया माँ।।

गहरा अतल समंदर माँ।
            स्वर्ण प्रभा -सी खर है माँ।।

निंदिया का स्वप्न बिछौना माँ।
       बचपन का मेरे खिलौना माँ।।

बच्चों की रक्षा कवच माँ ।
        मिथ्या से जग में सच माँ।।

मंजिल की ओर जाती डगर माँ।
                 योद्धाओं सी निडर माँ।।

सुख सौख्य का खज़ाना माँ।
                संगीतमय तराना माँ।।

परमेश्वर की अनुकंपा माँ।
                खुशबू में जूही चंपा माँ।।

जगती के कण -कण में माँ।
           मेरे जीवन के हर क्षण में माँ।।

कोटि- कोटि वंदनीय माँ।
        शत -शत प्रणाम मेरी नमनीय माँ।।

Friday, May 8, 2020

हाशिया


हाशिया
पन्ने को तीनों ओर से
घेरा हुआ हाशिया
मामूली अथवा
महत्त्वहीन नहीं होता।

पूरे पन्ने का सार
होता है हाशिये पर

लोग हाशिये को
दरकिनार क्यों समझते हैं
जबकि हाशिये पर उपस्थित
सभी को सत्यापित करता
उसकी महत्ता दर्शाता
हस्ताक्षर भी
 हाशिये पर ही
 मौजूद होता है
और बिन हाशिये के
पन्ना भी बेजान
 नीरस, उलझा हुआ
अथवा कोरा अर्थहीन
 ही नज़र आता है

Tuesday, May 5, 2020

भक्च्यों च्यों.... भक्च्यों च्यों..


 भक्च्यों च्यों.... भक्च्यों च्यों..

ये शब्द मुझे मेरे बचपन की याद दिलाते हैं...आज यूँ ही बिस्तर पर लेटे- लेटे अचानक ही मेरे मस्तिष्क में ये शब्द कौंधे औऱ मैं अपने बचपन के गलियारों की सैर करने लगी ।नानी जो मुझे अक्सर ये कहानी सुनाया करती थीं।वे तो अब रही नहीं।

बहुत कोशिश की कि कहानी को याद कर पाऊँ। पर इन दो शब्दों के अलावा  सबकुछ धुँधला था ;अस्पष्ट -सा।पूरी कहानी याद ही नहीं आ रही थी ..
इसलिए माँ को फोन लगाया।अब माँ से बेहतर और कौन हो सकता था!!कहानी सुनते सुनते बचपन वाला सुनहरा पल मैं पुनः जी रही थी।

अब बड़ी हो गई हूँ ।बड़े -बड़े दो बच्चों की माँ हूँ। स्कूल में न जाने कितने बच्चों को पढ़ाया है मैंने। मेरे कितने ही छात्र आज बड़े -बड़े पदों पर आसीन हैं। पर हूँ तो अब भी अपनी माँ की वही छोटी -सी बेटी।उसी प्यार से उन्होंने मुझे फिर से गौरैया वाली वह कहानी सुनाई ;जितने प्यार से वे मुझे मेरे बचपन के दिनों में सुनाया करती थीं।
वह कहानी कुछ यूँ थी।-

"एक ठे रहा भाट ...अउर अपने खेते में बोये रहा चेनवा.... एक ठे रही गौरैया ...उ रोज आइके भटवा के चेनवा चर लेय...
भटवा समझि न पावे कि ओकर चेनवा आखिर के चर लेत ह....उ बेचारा बड़ा परेशान भ... लेकिन एक दिन चेनवा चरत के एक ठे गौरैया के उ देख लिहेस, " इहे गौरैया हमार चेनवा रोज चर लेत ह..."
ओकरे आइल बहुत तेज गुस्सा..अगले दिन भिनसहरे भटवा जाल बिछाय के गौरैया की पकड़ लिहेस...

"चल चिरैया तोहे हम जेल में बंद करब अब... तू  रोज हमार चेनवा चर लेत हू...हम तोहे छोड़ब न आज... तोहे त जेल में बंद कराइब....तबे तोहार होश ठेकाने आई.... "

 गौरैया बेचारी ओकरे गोड़े गिरय लाग... "हे भाय.... हम्मय माफ़ कई द.... अब ई गलती हमसे दोबारा न होई.... अब से हम कभौं तोहरे खेते के ओर न लौकब... अबकी बेरी जाय द भाय...हमसे गलती होइ ग... माफ कय द भाय... माफ कय द..."

"माफ़ी.. अउर तोहे...ना... इ त तोहे हमार चेनवा चरे से पहिले सोचय के चाहत रहा.. अब माफी वाफी भुलाय जा... माफी -वाफी तोहय न मिली... हंहह...

अब गौरैया बाँध के भटवा लेइ चला दरोगा के लगे जेल में बंद करावै....
बेचारी गौरैया के रोइ- रोइ हालत खराब होइ ग... लेकिन भटवा के मन ना  पसीजल...
जात -जात रस्ते में मिला एक ठे  बकरी के चरवाहा...
गौरैया के मन में उम्मीद जगल ... सोचेस कि होइ सकत ह कि ई बकरी चरवाहा हम्मय छोडाय लेय...रोइ- रोइ कहय लाग्-
"हे बकरी के चरवाहा ...
मोके भाट लेहे जात बा...
भटुल्ली लेहे जात बा...
सई के किनारे मोर बसेर पड़ल...
मोर बाल- बच्चा रोइ- रोइ मरत होइहे ....भक्चयों च्यों ...भक्च्यों च्यों..."

गौरैया के रोवाई सुनके बकरी के चरवाहा के बड़ी दया आइल ...
उ भटवा से कहय लाग्," हे भाय  हम्मय ई गौरैया के आवाज बहुत प्रिय लागत बा... तू चाहा त हमार एक ठे बकरिया लेइ ल ..अउर ई गौरैया क छोड़ द....   ऐके अपने बाल -बच्चा के पास जाइ द...एकर बाल -बच्चा कुल रोवत होइहैं...."

"हंहह...बाल- बच्चा रोवत होइहैं.... इ हमार कुल चेनवा चर लिहेस ...हम एके न छोड़ब.... जेल में बंद कराईके रहब.... बड़ा आया बकरी देवे वाला... चला भागा इहाँ से....."
बकरी के चरवाहा के भगाइ के भाट आगे बढ़ल।

जात -जात रस्ते में मिला गाय के चरवाहा ... चरवाहा क देखके गौरैया के फिर आस जगल ...उ फिर से रोइ -रोइ आपन दुखड़ा सुनावै लागल....

"हे गइया के चरवाहा......हे गइया के चरवाहा......
मोके भाट लेहे जात बा...
भटुल्ली लेहे जात बा...
सई के किनारे मोर बसेर पड़ल...
मोर बाल बच्चा रोइ -रोइ मरत होइहे.... भक्चयों च्यों ...भक्च्यों च्यों..."

गइया के चरवाहवौ के भी गौरैया पे बड़ी दया आइल...उ भटवा से कहेस ," हे भाय..इ गौरैया के बोल हम्मय बहुत मीठा लागत बा... तू चाहा त हमार एक ठे गइया लेइ ल ..लेकिन ऐके छोड़ द....   ऐके अपने बाल -बच्चा के पास जाइ द...एकर बाल -बच्चा कुल दुःखी होइहैं भाय...."

लेकिन भाट बहुत गुस्सा में रहल .…. गइया के चरवाहवा के भी उ मार झगड़ के भगाई दिहेस.... अउर चल दिहेस  गौरैया के जेल में बंद करावे...

आगे बढ़त -बढ़त एक- एक कइके ओके घुड़सवार मिला... फिर हाथी के महावत मिला. ...गौरैया रोइ -रोइ सबके अपना दुखड़ा सुनावै.. लेकिन भटवा केहुके नाय सुनेस.उ त ठान लेहे रहा कि गौरैया के जेल बंद कइके रही..

थाना पहुँच के भटवा पूरा किस्सा दरोगा के सुनाय दिहेस....
दरोगा भटवा के मारेस चार डंडा अउर डाँटेस "भक्क पागल ...केउ गौरैया के जेल में बंद करत ह रे... नान्ह के चिरई  तोहार केतना चेनवा चरि ग....हईं ....छोड़ ओके ...छोड़.... नाही त  अब्बय फिर से चार डंडा लगाइब.....
डर के मारे भटवा गौरैया क छोड़ दिहेस.. अउर ..हाथ जोड़ के दरोगा के सामने उकडूं -मुकडूँ उहीं जमीनिया पे बैठ ग....

गौरैया फ़ुर्र से उडिके पेड़े के डार पे जाइ के बइठ ग...अउर गावय लाग्-

"हाथी छोड़ा... घोड़ा छोड़ा...
लाती मुक्का सहत हया...
भक्च्यों च्यों...भक्च्यों च्यों..."

बकरी छोड़ा....गइया छोड़ा
पुलिस के डंडा खात हया
भक्च्यों च्यों.. भक्च्यों च्यों.."

खुशी से गावत -गावत गौरैया अपने देश, अपने बाल बच्चा के पास उड़ि गइल।.....

 दोस्तों ,गौरैया तो फ़ुर्र हो गई।साथ ही बचपन भी फ़ुर्र हो गया ।पता ही नहीं चला मैं बड़ी हो गई। हम्म... बड़ी तो हो गई मैं ।पर दिल आज भी बच्चा है।दादी -नानी की कहानियाँ आज भी मुझे बहुत लुभाती हैं। परियों के देश की सैर आज भी अच्छी लगती है।

Saturday, May 2, 2020

51वीं सालगिरह पर...

माँ- पापा को उनकी 51वीं सालगिरह पर समर्पित:(1दिन देर से पोस्ट कर रही हूँ।)


करते रहे मुझे हरदम ही गार्ड।
पापा हो आप मेरे  id कार्ड।।

पूरी की मेरी हर इक इच्छा।
जीवन मूल्यों की दी शिक्षा।।
बना दिया मुझे इंच से यार्ड।
करते रहे मुझे हरदम ही गार्ड।

ममता का तेरा मुझपर साया।
मुझको हर बाधा से बचाया।।
मां तुम ही मेरी राशन कार्ड।
करते रहे मुझे हरदम ही गार्ड।।

ईश्वर से मन यही कहे।
आपकी जोड़ी बनी रहे।।
इच्छा पूरी करो ओ लॉर्ड।
बनूँ मैं उनका आधार कार्ड।।

इच्छा पूरी करो ओ लॉर्ड।
बनूँ मैं उनका आधार कार्ड।।

करते रहे जो मुझको गार्ड
बनूँ मैं उनका आधार कार्ड

Friday, May 1, 2020

मई दिन नहीं....माँ - पापा का दिन।


     यह  मंच किसी ब्लॉगर का नहीं बल्कि एक ऎसी स्त्री का है जिसके भीतर न जाने कितने समंदर उमड़ रहे हैं जिनकी उर्मियाँ कभी खुशियों से ऊपर उठती है , लहराती , बलखाती हैं तो कभी तूफानों से टकराकर सब कुछ तबाह कर देना चाहती हैं।
आज सुबह से ही दिल में एक टीस उठ रही है कि मम्मी क्या सोच रही होगी। सबसे छिपकर -छिपकर रोई होगी ताकि किसी को पता न चल जाए। खुद ही  अपने आँसूं भी पोछी होगी। 1 मई मेरे परिवार के लिए सबसे बड़ा दिन होता था कभी। जश्न और खुशियों का दिन । सबके जुटने का दिन। आज ही के दिन मम्मी पापा की शादी की वर्षगाँठ होती थी। जीवन के अनमोल पचास साल साथ निभाने के बाद पापा माँ को और हम सब को अकेला छोड़कर चले गए। जीवन के झंझावातों से अकेले लड़ने के लिए।

3 जुलाई 2019 की काली रात मेरी माँ के जीवन में सदा के लिए ही दुखों का  अँधियारा भर गई और हम अनाथ हो गए। 3 जुलाई का वह दिन मेरे जीवन का सबसे काला दिन।

पापा आपकी बहुत याद आती है
😌😞🙏😞😌

हमसे नाता तोड़ गए क्यों।
बाबुल मेरे छोड़ गए क्यों।।

तुम माँ की आँखों के कजरा। 
तुम थे बिंदी चूड़ी गजरा।।

माँ का कुमकुम पोंछ गए क्यों। 
चूड़ी माँ की तोड़ गए क्यों।। 

भैया बहना निशिदिन रोते।
पापा पास हमारे होते।।

तुम बिन मैका नहीं सुहाता। 
हरदम मन तुम बिन अकुलाता।। 

लौटो फिर से पापा मेरे।
लौटें फिर वे दिवस सुनहरे।।

प्रभु क्यों ऐसा दिन दिखलाया।
छीना बाबुल को क्या पाया।।



आज चढ़ाओ फिर प्रत्यंचा

दसकंधर ने रघुनन्दन के हाथों खाई मात । किन्तु पीछे छोड़ गया व‍ह सूपनखा का घात। नष्ट हुई लंका सोने की,   खेत रहा रावण का क्रोध। ले...