Friday, May 1, 2020

मई दिन नहीं....माँ - पापा का दिन।


     यह  मंच किसी ब्लॉगर का नहीं बल्कि एक ऎसी स्त्री का है जिसके भीतर न जाने कितने समंदर उमड़ रहे हैं जिनकी उर्मियाँ कभी खुशियों से ऊपर उठती है , लहराती , बलखाती हैं तो कभी तूफानों से टकराकर सब कुछ तबाह कर देना चाहती हैं।
आज सुबह से ही दिल में एक टीस उठ रही है कि मम्मी क्या सोच रही होगी। सबसे छिपकर -छिपकर रोई होगी ताकि किसी को पता न चल जाए। खुद ही  अपने आँसूं भी पोछी होगी। 1 मई मेरे परिवार के लिए सबसे बड़ा दिन होता था कभी। जश्न और खुशियों का दिन । सबके जुटने का दिन। आज ही के दिन मम्मी पापा की शादी की वर्षगाँठ होती थी। जीवन के अनमोल पचास साल साथ निभाने के बाद पापा माँ को और हम सब को अकेला छोड़कर चले गए। जीवन के झंझावातों से अकेले लड़ने के लिए।

3 जुलाई 2019 की काली रात मेरी माँ के जीवन में सदा के लिए ही दुखों का  अँधियारा भर गई और हम अनाथ हो गए। 3 जुलाई का वह दिन मेरे जीवन का सबसे काला दिन।

पापा आपकी बहुत याद आती है
😌😞🙏😞😌

हमसे नाता तोड़ गए क्यों।
बाबुल मेरे छोड़ गए क्यों।।

तुम माँ की आँखों के कजरा। 
तुम थे बिंदी चूड़ी गजरा।।

माँ का कुमकुम पोंछ गए क्यों। 
चूड़ी माँ की तोड़ गए क्यों।। 

भैया बहना निशिदिन रोते।
पापा पास हमारे होते।।

तुम बिन मैका नहीं सुहाता। 
हरदम मन तुम बिन अकुलाता।। 

लौटो फिर से पापा मेरे।
लौटें फिर वे दिवस सुनहरे।।

प्रभु क्यों ऐसा दिन दिखलाया।
छीना बाबुल को क्या पाया।।



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