मैं अभी जा रहा हूँ माता ।
खेलूँ मैं फिर से गोद तेरी,
य़ह पल - पल मन है दुहराता।।
1
अंतिम यात्रा पर मैं हूँ चला,
चुकता हो कैसे ऋण तेरा ।
लहू की हर बूंद तुझे दे दी,
बैरी ने आकर जब घेरा।।
माँ महल दो महले ना चाहूँ,
बस चाहूँ जन्मों का नाता।
खेलूँ मैं फिर से गोद तेरी,
य़ह पल - पल मन है दुहराता।।
2
तेरी धूलि महके ज्यों चंदन,
माँ कण-कण को तेरे वंदन।
विख्यात हो बन फिर विश्व गुरू,
हो जग में तेरा अभिनंदन।।
ऐ जननी जन्मदात्री मेरी,
तू ही पालक ,तू ही दाता।
खेलूँ मैं फिर से गोद तेरी ,
य़ह पल- पल मन है दुहराता।।
3
धारा गंगा यमुना की लिए,
ध्वज हरदम तेरा लहराए।
रण भेरी बजती रहे तेरी,
भय से हर दुश्मन थर्राए।।
तेरा चीर रहे उज्ज्वल चटख,
हर वर्ण मुझे तेरा भाता ।
खेलूँ मैं फिर से गोद तेरी,
य़ह पल - पल मन है दुहराता।।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'
No comments:
Post a Comment