दसकंधर ने रघुनन्दन के
हाथों खाई मात ।
किन्तु पीछे छोड़ गया वह
सूपनखा का घात।
नष्ट हुई लंका सोने की,
खेत रहा रावण का क्रोध।
लेकिन सूपनखा का अब तक
मिटा नहीं प्रतिशोध।।
सनातनी भरतवंशी पर
बरसाती पाथर दिनरात।दसकंधर ने रघु..
बीते युग ,बीती सदियाँ
प्रजा कर रही त्राही माम्।
सूपनखा की संततियों को
अब तो आकर तारो राम।।
असुर अनगिनत तुमने तारे
कहो आज क्यों अटकी बात।दसकंधर ने रघु....
विश्वनाथ अपनी काशी में
सहते रहे नित्य अपमान।
बरसों बेघर थे तुम भी तो
नहीं मिला तुमको सम्मान।।
आज चढ़ाओ फिर प्रत्यंचा
हे नाथों के नाथ।दसकंधर ने रघु.....